विविध >> काशी मरणान्मुक्ति काशी मरणान्मुक्तिमनोज ठक्कर, रश्मि छाजेड़
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स्वयं की काया में स्थित हो साधना करता मानव जब स्वयं के सच्चिदानंदस्वरूप आत्मा से परिचित होता है, तो उसी घड़ी देह-भान से मुक्त हो जाता है। यही मरण भी है एवं काशी मरणान्मुक्ति भी!
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